दबी हसरतों को आज तू बाहर तो आने दे।
छू के तेरे लबो को मुझे हद से गुजर तो जाने दे
बड़ी ख्वाइश थी ये मेरी फ़नाह हो जाऊँ तुझमे मैं
अधूरी ख्वाइशों को आज पूरी हो तो जाने दे ||
पिघल जायेगा तेरा जिस्म आके मेरी बाँहों मैं |
मेरी सांसो को तेरी रूह से गुजर तो जाने दे ||
हर रोज सजाएँ हैं ख्वाब मैंने तेरी हसरतों के |
इस रात को ज़रा लौट कर वापस तो आने दे ||
ख्वाहिशें तेरी भी हैं मेरी भी हैं डूब जाने की |
ख्वाहिशो के समुन्दर से तू मोती चुन तो लाने दे।। ||
भुला देगी ज़माने को तू आके मेरी बाँहों मैं |
तेरी यादों के दरिया से मुझे बाहर तो आने दे ||