Thursday, May 14, 2009

मेरा ये स्पर्श उसे हमेशा याद आएगा

मेरा ये स्पर्श उसे हमेशा याद आएगा
जब हम न होंगे तो गुजरा ज़माना याद आएगा
भर लेता था आँखों मैं यूँ तस्वीर उसकी
मेरा उसको यूँ नजरो मैं बसाना याद आएगा
मेरा ये स्पर्श उसे हमेशा याद आएगा

जब तन्हाई की आहट से तड़प उठता था मेरा मन
खामोश रहते थे लब, भर आते थे नयन
खामोश रह के भी कह गए हम दिल के फ़साने को
निगाहों से मेरा हाल- इ दिल सुनाना याद आएगा
मेरा ये स्पर्श उसे हमेशा याद आएगा

वो छोड़ने को हमें हो जाते है तैयार ज़रा सी बात पर
जान निकलती है मेरी उनकी इस जालिम अदा पर
वो दिल बहलाते है अपना ,मेरी यूँ जान जाने पर
जान देकर, उनका दिल बहलाने, उसे हमेशा याद आएगा
मेरा ये स्पर्श उसे हमेशा याद आएगा

Friday, April 17, 2009

ज़िन्दगी की राह

ज़िन्दगी की राह मैं यूँ ही चला जा रहा हूँ मैं
टूटे हुए घरों को यूँ संजोता जा रहा हूँ मैं
चलते हुए काफिलों मैं शायद किसी की तलाश न हो मुझे
फिर भी हर शक्स को अपना बनाता जा रहा हूँ मैं

हर राह के मोड़ पर मैंने खुद को अकेला ही खडा पाया
जब साथ की मुझे ज़रुरत थी तो कोई आगे बढ़ के न आया
एक दिन सब इस कदर मुझको चाहेंगे
बस यही सपने इस दिल मैं संजोते जा रहा हूँ मैं

अब किसी और को चाहने की ख्वाहिश नहीं इस दिल को
एक तू ही बहुत है इस दिल को धड़काने के लिए
तू मिले न मिले ये तो नसीब होगा तेरा मेरा
मैं तो बस तेरी यादों को दिल मैं बसाये जा रहा हूँ

Monday, April 6, 2009

इंतज़ार और सही -1

ये मेरी पहली क्रति है इस क्रति के माध्यम से मैं अपना लेखन कौशल प्रकट नहीं करना चाहता हूँ न ही ये ब्लॉग मैंने इसलिए बनाया है इस क्रति के माध्यम से मैं अपनी सोच एवं सन्देश आप तक पहुँचाना चाहता हूँ अगर आप तक मेरा सन्देश पहुँच गया तो मैं समझूंगा कि मेरा लिखना सफल हो गया ................

बात उन दिनों की है जब भारत मैं राय साहब की पदवी हुआ करती थी उत्तर प्रदेश के छोटे से गाँव बेडा पुर मैं एक राय साहब रहा करते थे कहने को तो वो भगवान् मैं असीम विश्वास रखते थे और रोज़ प्रातः कल ४ बजे उठकर गाँव के किनारे ही बह रही नदी मैं स्नान करके अपने घर मैं प्रतिष्ठित मंदिर मैं कम से कम तीन घंटे पूजा किया करते थे और भला वो पूजा क्यों न करें भगवान् की कृपा से ऊपर वाले का दिया सब कुछ था उनके पास एक सुन्दर सुशील पत्नी और एक होनहार १० वर्षीय पुत्र और तो और गाँव की रायबहादुरी भी उनके पास थी लेकिन उनका गाँव वालों से व्यवहार इतना अच्छा नहीं था , वजह अपनी धन सम्पति का उन्हें घमंड जो था उनके विपरीत उनकी धर्म पत्नी दयालु स्वाभाव की थी , इसी गाँव मैं दयाशंकर नाम के पुजारी रहा करते थे जो कि गाँव मैं पूजा पाठ करके जैसे तैसे अपने घर का गुजारा कर रहे थे उनके घर मैं बुढे मां बाप के अलावा उनकी पत्नी विमला व १० वर्षीय पुत्र राजू था जब कभी गाँव मैं कोई पूजा पाठ होता तो इन्ही पुजारी जी को याद किया जाता और उसी दिन इनके घर मैं सब को पेट भर खाना मिलता उनकी इस दरिद्रगी का अनुमान गाँव वालों को न था आखिरकार उनके पूर्वजों की इज्जत का सवाल था

एक दिन अचानक ही राजू की तबियत ख़राब हो गयी तो पुजारी जी ने गाँव के ही हकीम जी को बुलाया हकीम जी ने राजू की नब्ज़ देखी और कुछ दवा की पुडिया देते हुआ कहा मामूली बुखार है ये पुडिया लो एक अभी दे देना और एक सुबह दे देना सुबह तक ठीक हो जायेगा और हकीम जी बाहर की दरफ चल दिए यूँ तो पुजारी जी की सारा गाँव इज्जत करता था तो हकीम जी ने भी उनसे पैसे नहीं लिए और बाहर जाते हुआ पुजारी जी से कहा - पुजारी जी बच्चा बहुत कमजोर है इसकी खुराक पर ध्यान दीजिये कम से कम सुबह शाम एक गिलास दूध तो इसे दिया कीजिए अगर ऐसे ही इसकी हालत रही तो फिर हमारे बस की बात नहीं होगी . पुजारी जी ने दरवाजा खोलते हुए कहा अरे हकीम जी आज कल के बच्चो को तो आप जानते ही हैं सुबह सुबह निकल जाते है खेलने के लिया फिर शाम को ही लोटते हैं ऐसे मैं उन्हें अपने खाने का ध्यान कहाँ रहता है पुजारी जी ने इस बात से अपनी दरिद्रगी छुपाते हुए कहा ,हकीम जी खांसते हुए बोले अरे भाई आप तो बड़े है न आप को तो ध्यान रखना चाहिए. ये कह कर हकीम जी चले गए . पुजारी जी मन ही मन बड़े दुखी थे सोच रहे थे अगर बात ज्यादा बिगड़ गयी तो मैं राजू का इलाज कहाँ से कराऊंगा जैसे तैसे तो एक वक़्त की रोटी का इंतजाम हो पाता है

पुजारी जी मन ही मन बड बढाते हुए अन्दर की तरफ चले गए तभी उनकी पत्नी विमला ने कहा- क्या कह रहे थे हकीम जी, पुजारी जी ने झल्लाते हुए कहा तुने सुना नहीं क्या कह रहे थे मामूली बुखार है सुबह तक ठीक हो जायेगा तू जा और उसको पुडिया खिला दे विमला को कुछ आशंका हुई कि बात कुछ और है राजू की तबियत दिन ब दिन बिगड़ती ही जा रही थी .

पुजारी जी राजू को देखते और पीठ करके अपने आंसू छुपाते / बेटे को खो देने के विचार से ही उनकी रूह कांप जाती ,विमला से अपने बेटे की हालत न देखी गयी उसने पुजारी जी से कहा बताते क्यों नहीं क्या हुआ है राजू को. ? वो ठीक नहीं हो रहा हकीम जी क्या कह रहे थे? उसका शरीर बिलकुल सूख गया है और ये कहते कहते विमला की आँख भर आई . विमला को रोते देख पुजारी जी भी अपने आंसू न छुपा पाए और बोले क्या करूँ मैं, उसे कहाँ से दूध दही खिलाऊ. मैं तुम लोगो को दो वक़्त की रोटी तो दे नहीं पाता /और ये कहते कहते पुजारी जी फूट फूट कर रो पड़े विमला को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे वो तो अपने घर की स्थिति से वाकिफ थी लेकिन वो तो राजू की माँ थी उसे तो अपने बेटे का मुरझाया हुआ मुंह दिखाई दे रहा था , कभी वो अपने बेटे की तरफ देखती तो कभी अपने पति की तरफ , उसकी तो जैसे दुनिया ही उजड़ गयी हो वो बेचारी तो कुछ कर भी नहीं सकती थी कहाँ जाये कहाँ से पैसे लाये अब तो दोनों को कोई उम्मीद नहीं नज़र आ रही थी. गाँव मैं कोई ऐसा भी नहीं था जिससे वो कुछ पैसे उधर ले ले सिर्फ रायबहादुर को छोड़ कर और उनसे उन दोनों को ही उम्मीद नहीं थी फिर भी मन को समझा कर पुजारी जी ने रायबहादुर साहब के यहाँ जाने का फैसला किया

शाम होते वो हवेली पहुँच गए वहां दरबार ने उन्हें प्रणाम किया और आदर सत्कार पूर्वक मेहमान कक्ष में बैठाया और रायबहादुर साहब को सूचना दी लम्बे इंतज़ार के बाद रायबहादुर नीचे आये और कहाँ- राम राम पुजारी जी कैसे आना हुआ पुजारी जी ने खड़े हो कर उनका अभिवादन स्वीकार किया और कहा बस साहब इधर से गुजर रहा था तो सोचा साहब के दर्शन कर चलूँ पुजारी जी ने हाथ जोड़ते हुए कहा .

रायबहादुर ने कहा कैसे हैं आप ? पुजारी जी ने कहा बस दुआ है साहब की, मन ही मन पुजारी जी बड़े असमंजस में थे सोच रहे थे कैसे कहूँ पैसों के लिए जैसे तैसे पुजारी जी सकुचाते हुए अपनी बात कही -रायाबह्दुर साहब एक कष्ट देना था कई दिनों से हमारा बेटा राजू बीमार है 15 दिनों से पलंग से नहीं उठा हकीम जी कह रहे थे शहर से दवाई मंगानी पड़ेगी और बहुत दिनों से मुझे कोई काम नहीं मिला है तो थोडी आप की कृपा हो जाती तो बच्चे की जान बच जाती अब तो मालिक आपका ही सहारा है पुजारी जी कप कपंती आवाज़ मैं बोले , रायबहादुर साहब ने कहा अरे पुजारी जी कैसी बातें कर रहे है आप का बेटा मेरे बेटे के जैसा है बताइए कितने पैसे चाहिए आपको ,पुजारी जी ने खुश हो कर हाथ जोड़ते हुए कहा साहब 100 रुपये मैं काम हो जायेगा , रायबहादुर साहब बोले ठीक हैं मैं मुंशी को बोलता हूँ वो आपको दे देगा लेकिन इसके बदले मैं आप गिरवीं क्या रखोगे ? और ये सुनते ही पुजारी जी के चेहरे का रंग उतर गया और पुजारी जी दबी हुई आवाज़ मैं बोले साहब मेरे पास तो गिरवीं रखने के लिए कुछ नहीं है मेरे पास तो घर भी नहीं है मैं तो गाँव के मंदिर मैं एक छोटी सी कुटिया मैं रहता हूँ जो कि आप के किसी काम की नहीं .

ये सुनकर साहब तेज आवाज़ मैं बोले तो पुजारी जी मैं भी आप के किसी काम का नहीं धन्यवाद और कह कर वो ऊपर चले गए . पुजारी जी बुझे मन से उदास अपने घर की तरफ चल दिए सूरज डूब रहा था और उनकी उम्मीद का सूरज भी डूब गया था थके हुए उनके पैर अपने घर की तरफ बढ़ रहे थे उनकी आँखों के सामने अपने बेटे का चेहरा रह रह कर सामने आ रहा था शायद वो अपना बेटा खो चुके थे .
............शेष अगले अंक मैं .....इंतज़ार और सही -2

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